तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी सीमा वर्मा 'अपराजिता' तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी,तूने जो भी कहा भूमिका मैं बनी।प्रेम के इस अनूठे सफ़र में प्रिये,कृष्ण है तू मेरा राधिका मैं बनी।तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी। साथ हूँ मैं तेरे तू जहाँ भी रहे,सारे सुख–दुःख सदा साथ मिलके सहें।ह्रदय से हृदय हों मिलें इस तरह,दर्द हो ग़र तुझे अश्रु मेरे बहें।प्रेम है साधना,साधिका मैं बनी।तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी। मिलने और बिछड़ने का भय भी नहीं,स्वर, ताल , छंद, साथ लय भी नहीं।प्रेम की ध्वनि पवित्र गुंजित हो उठी,तू ही तू हर जगह “मैं” नहीं हूँ कहीं।शब्द है तू मेरा लेखिका मैं बनी,इस तरह से तेरी प्रेमिका मैं बनी।तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी।