मुद्दतों बाद सीमा वर्मा 'अपराजिता' मुद्दतों बाद आज,आँगन में मेरे,बरसात हुई। भीग गया तन-मन मेरा,मैं छुई-मुई कीडाल हुई।मुद्दतों बाद आज,आँगन में मेरे,बरसात हुई। थी धरा प्यासी मैं,मुद्दत से,बनकर बादल वो छाये हैँ।जाने कितना वक्त लगा पर,शुक्र है कि वो आये हैं।उनकी बाहों में जब सिमटी,तो फिर से सुहागनरात हुई।मुद्दतों बाद आज,आँगन में मेरे,बरसात हुई। उनके प्यार की झिलमिल बूँदे,लबों पे मेरे गिरती जाती।अँखियों के मोती भी झरते,दिल की कलियाँ खिल-खिल जाती।आज बना है वो मयकश और,मैं मदिरा का पात्र हुई।मुद्दतों बाद आज आँगन मेंमेरे बरसात हुई।