वो ख़ूबसूरत पल
वो ढलता सूरज
वो सिन्दूरी शाम
वो हथेलियों पर
लिखती तुम्हारा नाम।
वो आसमान पर
तारों की चादर
वो चाँद की चांदनी से
उजला हुआ अम्बर।
वो घंटो निहारती
एक-दूसरे को नज़रें
वो सवाल तुम्हारी आँखों के
मेरी झुकी पलकों के जवाब।
वो तेरे कंधे पर सर रखकर
गुज़रते न जाने कितने
ख़ूबसूरत पल
वो चाँद का पीछा करती
हमारी आँखें।
वो चाँद को बना
हर पल का साक्षी
मेरी साँसों का
तेरी साँसों से ये कहना
बीत जाएंगे ये पल और
न जाने कितनी सदियाँ
लेकिन हम रहेंगे साथ
यूँ ही हर लम्हें में
हर नज़ारे में
आज जो साक्षी हैं
हर उस चमकते सितारे में।
फिर तेरा धीरे से मेरे हाथों को
अपने सीने पर रखना
और ये कहना “पगली ”
तू यहाँ रहती है
मेरी रूह में बसी है
तन से रूह तो ज़ुदा हो सकती है
लेकिन तू मेरी रूह से नहीं।
वो मेरी आँखों से टपकती
निश्छल प्यार की बूँदें
और फिर तेरा यूँ
छुपा लेना मुझे अपनी बाहों में
और बस खामोशी में
सुनाई देता सिर्फ हमारी
धड़कनों का शोर।