किसान

मर्म मेरा समझो
दुख मेरा जानो
मै भी हूँ इंसान,
मै हूँ किसान।

बहाकर अपना पसीना
मै अन्न उपजाता हूँ
जाड़े की ठंडी रातों में
खेतों में जाता हूँ
रहूँ कांपता चाहे
तुम्हारी करने को कम ठिठुरन
मै कपास उगाता हूँ
भीषण गर्मी में तप कर भी
अन्न उगाता हूँ
मै खाता हूँ चाहे चटनी रोटी
फल सब्जी तुम तक पहुंचाता हूँ
मर्म मेरा समझो
दुख मेरा जानो
मै भी हूँ इंसान,
मै हूँ किसान।

अन्न देवता मुझे बुलाते
कृषक देवता मुझे बताते
मेरे बिना भूखा मर जाएगा जहान
सब मानते फिर मैं क्यों परेशान
मर्म मेरा समझो दुख मेरा जानो
मै भी हूँ इंसान
मै हूँ किसान।

अन्न देवता की मुझे ना उपमा दो
देवता ना बनाओ बस इंसान बना दो
घर है मेरे भी मेरा भी है परिवार
जिसे चाहिए जीवन और उपचार
मेरे भी बच्चों को जीवन का अधिकार दो
मेरा मेहनताना दे दो बस
मुझ पर यह उपकार करो
समझो मेरी भावना
फसल है मेरी संतान
जिसे सम्हालता मै
सर्दी गर्मी हो या तूफान
मर्म मेरा समझो,
दुख मेरा जानो
मै भी हूँ इंसान,
मै हूँ किसान।