औरत

ना जात होती है
ना उम्र होती है
औरत तो दोस्तों
हर जगह कत्ल होती है
कभी निर्भया तो कभी प्रियंका
कभी मनीषा तो कभी फलां
यह तो सिर्फ नाम है दोस्तों
औरतों की आबरू तो
हर जात हरनाम पर
खत्म होती है
चली जाती है दुनिया से
बेआबरू होकर
फिर हर न्यूज़ चैनल
हर अखबार में
उसकी खबर होती है
औरत तो दोस्तों
किस जगह किस पल
सुरक्षित होती है
किसी चौराहे पर
किसी चौक पर
चार मोमबत्तियां जला दी जाती है
औरत की इज्जत सुरक्षा
करने की लाखों कसमें खाई जाती है
अगले ही दिन दोस्तों
सब कसमें भूला दी जाती है
इंतजार होता है
अगली वारदात होने का
किसी निर्भया या किसी मनीषा की
आबरू खोने का
वाह वाही लूटने को
फिर महफिले जमा दी जाती हैं
मोमबत्तियां जला दी जाती हैं
और बड़ी-बड़ी खबरें लगा दी जाती हैं
पर दोस्तों ना माँ बाप की
बेटी वापस आती है
ना उसकी आबरु बचा ली जाती है।

औरत तो औरत है दोस्तों
ना उसका नाम ना उसकी जाति है
गर मिटाना है इस खौफनाक मंजर को
गर चाहते हो बेटी इस तरह न रुखसत हो
तो दरिंदों की दरिंदगी को दूर करो
भरा है जो गंदगी का जहर
नामर्द मर्दों में
उस जहर को दूर करो
मोमबत्तियां जलाने से
समस्या का ना हल होगा
दरिंदगी मिटाने से ही
सुरक्षित बेटी का कल होगा।