स्वार्थ

ऐ मानव ! क्यों करते हो इतना स्वार्थ
एक बार निःस्वार्थ होकर देखो
स्वयं समझ जाओगे भावार्थ।

ईश्वर कौन है क्यों ढूँढते हो
एक बार खुद में झांक कर देखो
स्वयं समझ जाओगे कौन है भगवान।

दूसरों में गलतियां निकालना आसान है
खुद में गलती निकाल कर बताओ
फिर पता चलेगा क्या होता है अपमान।

सत्व,रज,तम से हुआ सृष्टि का सृजन है
ये वो त्रिगुण है जो मनुष्य में विद्यमान है
सत्व,रज ज्ञान और ऊर्जा है
इसके विपरीत तम अज्ञान है।

स्वार्थ और अहम मनुष्य को झुका देता है।
ज्ञान और प्रकाश को मिटा देता है।