गुरू चरण वंदना

दास हूँ, मैं उदास हूँ
चरणों के तेरे पास हूँ।
कर दो नजर, अज्ञानी पर
शिक्षा की करता आस हूँ। 

धर हाथ शीश, हमे दे आशीष
अपनी शरण मे लीजिये।
हूँ मैं मूढ़ ऐसा, जड़ जीव जैसा
प्रभु ज्ञान हमको दीजिये।

करुनानिधान, रख अपनी आन
अब लाज मेरी बचाइए।
ये जो सात स्वर, इनके शिखर
गुरु आप ही पहुँचाइये।

हे गुरु परम, मैं हूँ अधम
अब डोर आपके हाथ है।
जो मिली शरण, अब तेरे दर
तो माँ शारदा भी साथ है।

भरूँ ऐसी फूँक, उठे उर में हूक
कोई राग ऐसा गाओ प्रभु।
राधा का गान, मीरा की तान
ऐसी बाँसुरी बजाओ प्रभु।

मुझे सीख दे, यह भीख दे
एक शिष्य मैं तेरा कहाऊँ।
हो मयूर मन, घुमड़े गगन
एक तान ऐसी मैं बजाऊँ।

ये मेरा मन, करता वंदन
हे गुरु तुम्हे शत शत नमन।
हे प्रभु तुम्हे शत शत नमन
हे विद्यानाथ शत शत नमन।