कृषक का नववर्ष

मिट्टी खोदी
बीज बोया
खेती सींच
सपना संजोया
शीत ताप
वर्षा सहकर
प्रतिदिन किया संघर्ष।

साधना निरंतर की
कर्म से पथ डिगा नही
जद्दोजहद की प्रकृति संग
सत्य से पग हटा नही।
पीले पीले फूलों सा
जब निकला यह निष्कर्ष।

चतुर्मास की चाकरी
धरती की मन से करी
ईश्वर ने खुश होकर
धन से धरा की गोद भरी।
धरती जब से सजने लगी
तब कृषक ने मनाया नववर्ष।

सत्य की राह पर
जिसने किया संघर्ष
निश्चित ही जीत मिली
मंजिल मिली निकला निष्कर्ष।
कार्य की सफलता पर ही
कर्मयोगी मनाता नववर्ष।