प्रारब्ध सुनीता गोंड जीवन तो रैन बसेरा हैभोर भये उड़ जाना हैप्रारब्ध तो एक इशारा हैइससे परिचित जग सारा है।कभी खुशी तो कभी है गमपल पल घटता जीवन व तनप्रारब्ध का रूप विशाला हैमन कर्मों की रंगशाला है।चले पखेरू जो पंख पसारउडे़ कितना भी गगन के पारआना उन्हे धरा पर हैप्रारब्ध का रूप निराला है।बुरे कर्मो का बुरा ही फलमिले हमें इसी जीवन मेंप्रारब्ध यही, यह निश्चित हैजीवन धारा के अनुक्रम में।