ठेले वाला सुनीता गोंड आज शाम कुछ जल्दी घर लौटूंगावही जज्बात लिये घर लौटूंगाकहूँगा मुझे इस सूखी रोटी से है प्यार।बच्चों के फटे कपडे़ से झांकती देह परमै फिर से पुलिन्दे डाल दूँगाअपनी अकड़ी कमर को लाठी का सहारा दूँगा।पत्नी की सुर्ख लालचूड़ियों की खनखनाहट सुनूंगाकुछ पल,कुछ पल उसकी तरसती नीलीआँखो को देखूंगा।ढलती शाम के सियापा में भोलूको टहलाऊंगालपलपाते जुगनूओं में कुछ रोशनी ढूंढ़ूंगा।लौट आऊँगा फिर से ठेले के पासजिसकी खड़खड़ाहट से शायदगली के सुनसान तख्तों पर बैठेचमगादड़ फड़फड़ा उठे।फिर से उन्ही चिथड़ों को लपेटकरमै सो जाऊंगाअगली सुबह तक के लिये ।।