ठेले वाला

आज शाम कुछ जल्दी घर लौटूंगा
वही जज्बात लिये घर लौटूंगा
कहूँगा मुझे इस सूखी रोटी से है प्यार।

बच्चों के फटे कपडे़ से झांकती देह पर
मै फिर से पुलिन्दे डाल दूँगा
अपनी अकड़ी कमर को लाठी का सहारा दूँगा।

पत्नी की सुर्ख लाल
चूड़ियों की खनखनाहट सुनूंगा
कुछ पल,
कुछ पल उसकी तरसती नीली
आँखो को देखूंगा।

ढलती शाम के सियापा में भोलू
को टहलाऊंगा
लपलपाते जुगनूओं में कुछ रोशनी ढूंढ़ूंगा।

लौट आऊँगा फिर से ठेले के पास
जिसकी खड़खड़ाहट से शायद
गली के सुनसान तख्तों पर बैठे
चमगादड़ फड़फड़ा उठे।

फिर से उन्ही चिथड़ों को लपेटकर
मै सो जाऊंगा
अगली सुबह तक के लिये ।।