वसुंधरा सुनीता गोंड अम्बर से अवतरित एक किरणकरती अवलोकित समस्त लोक।अवनी के गर्भ में प्रसून सारहोता वसुधा का प्रथम द्वार।जगमग करता वह प्रदीप कतारअविचल रहता हर एक बार।तटिनी का मधुर मेघपुष्पकर देता सबको एक सार।पवन वेग का मधुर स्पन्दनपुष्पों का करता है आलिगंन।देव गृह का वह शंखनादभरता मन में अतिव उन्माद।अरण्य भाग में शिखावलकरता नृत्य जब पंख पसार।गर्वित होता वह गिरिराजदेख वसुधा का साज शृंगार।