चहक सुनीता गोंड अब भी बुलबुल की चहक मेंवो चहचहाहट है,उसके नर्म पंखो मेंवो गरमाहट है।संकुचित है वह भीकुछ ही जगहों पर,फैलाव अब भी हैउसकी हर उडा़न में।मौन वह भी हैअपने आशिंयाने मेंये ना बता पाने कादुख भी नही है उसे।वायु की सूक्ष्म आहट अब भीड़राती है उसे,झरने की तरल बूँदे अब भीप्यास बुझाती है उसकी।दानों के लिए दूर तकचली जाती है अब भी,घोंसले के लिए तिनकेजुटाती है अब भी ।नन्हें पंछी को उड़नासिखाती है अब भी,अंबुद की गहराईयों मेंउतर जाती है अब भी।करना चाहिए उसे भीइन पर निरुद्देश्य अभिमान,बन जाना चाहिए एक पंछी।तभी कर पायेगी वहअपने सपने साकार।।