किसकी है ये ख़ता

क्या होने वाला है आज
क्या होगा अभी कल?
हृदय की वेदना कराह उठती हर पल 
फैला इस धरा पर विकरालता अविछिन्न
उगलता गगन भी असीमित अन्धकार 
स्तब्ध सा हुआ है हर शाख, हर नगर
बेबस सी सबकी आँखे बेबस सा ये शहर
सहकर भी असीमित बोझ हँसती रहती थी जो सदा
सुनकर अब करुण पुकार सिसक उठती ये धरा
मंजर कभी इन आँखों ने देखा नही था ऐसा
पूछे हर जुबां, जुबां से कि किसकी है ये ख़ता।