निज आशा का संचार करो

नव पल्लव का शृंगार करो
उस आभा का आभार भरो
किंचित सकुचायी जो स्नेह लता
फिर प्रेम से सिंचित प्राण भरो।।

जीवन के शान्त कछारों में
निज आशा का संचार करो
कटुता जो मिले हृदय में भी
फिर फिर ना उसका ध्यान धरो ।

नामहीन उस पथ पर भी
तुम धैर्य का धीरज पाँव धरो
मिल जाएगी राह कभी
उस ईश्वर से तुम विनय करो।।

मन की आततायी पीडा़ पर
तुम करुणा का लेप करो
मिल जाएगा शीतल सा सुख
वह मलिन वसन तुम फेंक तो दो।

तिमिर कालिमा ले आये
घनघोर अंधेरा छा जाये
तुम विकल पाँव पीछे ना धरो
बस आस का दीप जला तो दो।।