अधखिले पुष्प की अभिलाषा

अधखिला पुष्प करता है मुझे आगाह
रहने दो मुझे इन डालियों के सुपुर्द
होने दो मुझे अभी और अभिसिंचित
मत लो मेरे प्राणों का रक्त दान ।

ये अभी सुर्ख़ नही हैं
नहीं है गर्माहट मेरे रक्त में अभी
खिलने दो मुझे अभी और
क्योंकि मैं मुरझाना जानती हूँ ।

जानती हूँ अपने अस्तित्व को मिटाना
पड़ने दो मुझ पर इन रेशमी बूँदो का जाल
लेने दो मुझे इस खुरदुरी मिट्टी की महक
करने दो मुझे यह प्रण ।

खिलकर तेरा ही आलिंगन पाऊँ मैं
एहसास होने दो मुझे उस दुख का
जिसमें सुख भी निहित हो
जिसमें निहित हो मेरी मर्यादा ।

चाँद की वह शीतल रोशनी पड़ने दो मुझ पर
होने दो मेरे यौवन को और मादक
ताकि मै वशीभूत हो पाऊँ तुम्हारे प्रेम के
उस प्रेम को जिसे मै महसूस कर पाऊँ।