अधखिले पुष्प की अभिलाषा सुनीता गोंड अधखिला पुष्प करता है मुझे आगाहरहने दो मुझे इन डालियों के सुपुर्दहोने दो मुझे अभी और अभिसिंचितमत लो मेरे प्राणों का रक्त दान ।ये अभी सुर्ख़ नही हैंनहीं है गर्माहट मेरे रक्त में अभीखिलने दो मुझे अभी औरक्योंकि मैं मुरझाना जानती हूँ ।जानती हूँ अपने अस्तित्व को मिटानापड़ने दो मुझ पर इन रेशमी बूँदो का जाललेने दो मुझे इस खुरदुरी मिट्टी की महककरने दो मुझे यह प्रण ।खिलकर तेरा ही आलिंगन पाऊँ मैंएहसास होने दो मुझे उस दुख काजिसमें सुख भी निहित होजिसमें निहित हो मेरी मर्यादा ।चाँद की वह शीतल रोशनी पड़ने दो मुझ परहोने दो मेरे यौवन को और मादकताकि मै वशीभूत हो पाऊँ तुम्हारे प्रेम केउस प्रेम को जिसे मै महसूस कर पाऊँ।