मधुर मिलन

शाम की बेला कब छायी थी
रात अन्धेरी कब आयी थी
मधुर मिलन कि भरी दुपहरी
अपना सुध भी खो आयी थी।

दुख की बेला बिसर गयी है
सुख अक्षुण्ण निकट लायी है
टूट चुकी थी लड़ी जो दिल की
आज पिरोने फिर आयी है।

खुले केश अधखुले मुखडे़ पर
प्रेम घटा फिर घिर आयी है
भरी लाज आँखो में सहसा
होठ मधुलिका बन आयी है।

आँख खुली जब अलसायी सी
निशा किरण जल भर लायी थी
प्रिय मिलन की आस जगी फिर
स्वप्न की कलियाँ मुरझायी थी।