हार मानूँगी नही

यह जीत तो विराम है
जीवन चलने का नाम है
थक गयी पथ में अगर
फिर भी रुकूगीं मैं नही
हार मानूँगी नही।

संकल्प जो टूटा अगर
विश्वास भी टूटा अगर
उस कर्म पर मिट जाऊँगीं
लेकिन रुकूँगी मैं नही
हार मानूँगी नही।

बीता समय जो ब्यर्थ अब
है यही बस खेद अब
तोड़ूँगी अब उस व्यूह को
लेकिन रुकूँगी मैं नही
हार मानूँगी नही।

निजता नही कुछ शेष अब
है यही उद्देश्य बस
पा जाऊँ बस उस छोर को
वापस रुकूँगी मैं नही
हार मानूँगी नही।