नयी सदी का भारत

नयी सदी का भारत
नयी प्रगति का भारत
स्वतन्त्रता की जब हवा चली थी
हर घर में चिंगारी सी जली थी।

देश में आजादी की लहर सी चली थी
हर गली खून की होली सी मनी थी
हर बालक की आँखो में
स्वतन्त्रता का सैलाब सा था
हर एक बाला ज्वाला सी जली थी।

हुआ देश आजाद जब
हुयी स्वतन्त्रता पास जब
लोगों ने फिर जश्न मनाया
मिल जुल कर खुशियाँ भी मनाया।

सोचे भारत का नव निर्माण करेगें
नयी उन्नति पर लेकर चलेगें
शिक्षा का उद्गार हुआ
हर आँगन गुलजार हुआ।

लोगों ने यह प्रण किया
मन में एक संकल्प लिया
देश हित में जान भी लुटायेगें
आजादी का मान बेवजह न गँवायेंगे।

देश का हुआ फिर काया कल्प
टूटा लोगों का लिया हुआ संकल्प
देश चढ़ने लगा राजनिति के हत्थे
भोली जनता हुयी फिर से निहत्थे।

अब करो कितना भी जतन
देश का होने लगा पतन
देश के वे अनमोल रतन
देश के लिए जिन्होंने ओढे़ थे कफन।

उनके बलिदानों का क्या यही मोल है
देश की हालत क्यों डांवाडोल है
उनके सपनों को देकर तिलांजलि
क्यों देते हैं उन्हें पुष्पों की श्रद्धांजलि।

गाँधी, नेहरु, तिलक, भीम
मेरे देश के ये वीर सपूत
इनके सपनों को साकार करो
नये भारत का निर्माण करो।

लोभ लालच झूठ खसोट
कहीं मर्डर तो कहीं रेप
इनसे दो देश को आजादी
तभी मिलेगी इन्हें सच्ची श्रद्धांजलि।