हम काशी के वासी

काशी में सब बासी अब
तट का रहा न काशी अब
पान बनारसी हुआ है फीका
घाट हुआ अब सूना सूना।

चाय की अड़ी अब हुयी उदास
साड़ महोदय रहे न खास
लस्सी की अब तास न ठंडी
गंगा जी भी हैं अब रुठी।

साडी़ में फुलकारी भी कम
आम बनारसी में रहा न दम
मंदिर में बस करो विश्राम
पंडो का भी यही बस काम।

सड़को पर भिखमंगी हौज
लगे स्वतंत्र भारत की फौज
झूठ हुआ अब इतना खस्ता
बिना दाम मिल जाये सस्ता।

स्मार्ट सिटी की पहल जो आयी
राजनीति की बस ढकच पायी
हाथ बढ़ा बस ले लो भाई
दान की गइया किसे सुहायी!

काशी में जो तरने आये
लुटा पूटा तब घर को जाये
तीन लोक से न्यारी काशी
हाय ! सनातन सुख अधिवासी।