युग का निर्वाहक सुनीता गोंड यूँ ही नहीं था विचारक शेषप्रबल था उनके वाणी का आग्रहप्रबोधन और बंधन,मुक्त नही थे उनके स्वरबंधी थी उनमें विचारों की विकलताजो स्वच्छन्द नही थेउनमें थी उर्वरता और पोषणउस दमित युग के प्रतिहर लय में थी सजलताएक नयापनअनुबंधन स्वयं का स्वयं से।