तुमने देखी हैं उसकी आँखे जैसे अभी अभी जागी हो अंतर्मन में डूबे अथाह स्वप्नों को लिए पलकों की घनेरे लड़ियों में कुछ स्वप्न पलते लगते है नन्हें स्वप्न, जिन्हें युवा होने में लगेगा समय दिन महीने और न जाने कितने साल पर क्या इस युवा आँखो की बेबाकी रास आयेगी सबको, इन स्वप्नों को न टूटने देने की बेबाकी सूक्ष्म अणुओं से निर्मित इस मन की विस्तृत जिज्ञासा जो कभी प्रौढ़ होगीं पर क्या ये प्रौढ़ता स्थिर रहेगी सदा के लिए।