प्यासी नदी

थे उसमें अथाह जल के स्रोत
जिससे लबरेज उसकी सूखी साँसे
मृत अपनी इच्छाओं के बांध से बधी
धाराओं के उल्टे उद्बोधन से कसी
करती विलाप हर एक लहर से एक बार
क्यों बेसुध हो गये है जल के मोती
हर आगन्तुक का इंतजार करती ये नदी
अपनी प्यास को दबाये मौन
देखती एक टक सूक्ष्म मछलियों की परछाईयां
पनहारीनियों का कोलाहल
देता है उत्साह
नदी को।