मैं कविता हूं

मैं
कविता हूं
ज़रा ठहरो
ये पढ़कर भौचक्का न होना
मैं
कोई स्त्री नहीं हूं
अपितु मुझे जन्म देने वाली
एक स्त्री ही है।
मेरा जन्म
कवयित्री के ह्रदय से हुआ है
प्रकृति को
जागृत रखने के लिए
मैं संसार में आई हूं।
मैं
मात्र कुछ शब्दों की
संरचना नहीं हूं। 
मैं
शब्दों की तुकबंदी का
बोध भी नहीं
वरन मैं कवयित्री की वेदना हूं।
उसकी अभिव्यक्ति हूं
उसकी पीड़ा हूं
मेरा सौंदर्य, सबसे खूबसूरत है
ये दीन-दुखी अनाथ वंचित
और मनुष्यों की पीड़ा को
प्रदर्शित करने में, सक्षम है। 
मैं
जीवन के पन्ने पर
दर्द की स्याही से लिखी जाती हूं
कवयित्री के मरने के बाद भी
जो जीवित रहे मैं वो हूं,
क्योंकि मैं “कविता” हूं।