मैं गुज़र गई हूँ

जो कोई पूछ लेता हैं हाल मेरा
ठीक हूं कहकर मुस्कुरा देती हूं
मन में फिर आता हैं ख्याल ऐसा
क्या सच में ठीक हैं मिज़ाज मेरा।

देखने में तो सब दुरुस्त लगता है
पर क्यों फिर ये मन विचलित रहता है
खोंखला हर रिश्ता होता जा है
देखो सब कैसे बिगड़ता जा रहा है।

अब बयां ना कुछ भी हो रहा है
मेरी वजह से दर्द उसे भी हो रहा है,
खुशियां उसकी भी मैं छीन रही हूँ
पर मेरे इश्क के काबिल वो ना रहा है।

अंधेरों से नाता जुड़ता जा रहा है
बंद आंख में ही सवेरा हो रहा है
जीवन से मोह हटता जा रहा है
मौत को बुलावा भेजा जा रहा है।

अंदर ही अंदर मैं बिखर रही हूँ
हर पल मैं थोड़ा और मर रही हूँ
अश्कों से नयन भिगो रही हूं
दुख तकलीफ सबसे छुपा रही हूं

जिंदगी की इस जंग से मैं थक सी गई हूँ
जिंदगी से हार मैं आज स्वीकार कर रही हूँ
खत भेज दो सबको “मैं गुज़र गई हूँ”
खत भेज दो सबको “मैं गुज़र गई हूँ”।