ले चल रे मेरे गाँव

ले चल रे मेरे गाँव,
जहाँ थी बरगद की छाँव।

मिलजुल कर जहाँ
रहते थे लोग
प्यार और मिलन के
थे अजब संजोग
ना कोई झगड़ा ना कोई रौला
थे सब अपने अपने काम में हरफनमौला
खुली गली बड़ा दालान
शुद्ध था वातावरण
तनिक ना था
हवाओ में प्रदूषण
स्वच्छ पवन ताजा
सुमन करते थे अभिवादन
ले चल रे मेरे गाँव
जहाँ थी बरगद की छाँव।

लुका छिपी,
पोषम पा और बनती थी रेल
गिल्ली डंडा, खो-खो जैसे थे निराले खेल
उदीप्त जहाँ होते थे दिलों के मेल
ले चल रे मेरे गाँव
जहाँ थी बरगद की छाँव।