दर्द-ए-तन्हाई

उस से क्यूँ रहा नही गया
मुझ से दर्द सहा नही गया।

दूर तक यह तन्हाइयों का सिलसिला दिया
दायरे इनकार के इकरार की सरगोशियाँ
दिल से भूला देने का मुझे ना कोई गिला दिया।

दर्द-ए-तन्हाई की सारी तहे और हादसे गुजार दिये
सब हो गये धुँआ एक एक वाकिया बिसार दिये।

लज्जत-ए-वस्ल से भी बढ़ कर है मजा
इक सफीना सा है तेरी तन्हाई की सजा।

दिल में छिपे हसरतों के मयखाने सजते रहे
हिचकियाँ रात भर दर्द-ए-तन्हाई बजते रहे।

उस से क्यूँ रहा नही गया
मुझ से दर्द सहा नही गया।