मौत

मौत आनी है
मगर ना जाने कब
और किस पल
और किस रूप मे
अनिश्चितता के साये में

यहाँ जिंदगी से बेहतर
मौत ही लिखती है
जीत और हार की दास्ताँ
कभी उस और जाते कदम
कभी लौट कर आते कदम

खुदकशी की हिम्मत
अस्पताल की बीमारी
या फिर बुढ़ापे की लाचारी
शायद इन रूपों से
सजेगी चिता हमारी

हिम्मत कहूँ या कायरता
नही भय हमें मौत से
बहुत बार गई है लौट के
चौखट हुई ना पार
मौत गई है हार

इस मौत के जादू से
ना कोई बचा हैं
ना ही शायद कोई बचेगा
जिंदगी की इस जंग में
क्यूँ कर कोई जँचेगा

राते भी होने लगी सर्द
चेहरा पड़ने लगा जर्द
डाक्टर भी ना समझे
डूबती नब्ज का दर्द
शायद
आ गई है
मौत।