भूख

कौन कहाँ और कितना बेकसूर है
शायद आप भुखमरी की त्रासदी से दूर हैं
भूख की व्यथा क्या होती है, बताऊंगा
तालियों के लिए गीत नही सुनाऊंगा।

हमने देखी है भूखे पेट की तड़प
यमराज से हुई है प्राण के लिए झड़प
भूखा बच्चा सो रहा आसमान ओढ़ कर
माँ रोटी कमा रही है पत्थर तोड़ कर।

भूख कभी कभी ऐसे मोड़ पर धकेलती है
सिर्फ दो हजार में माँ अपने बच्चे को बेचती है
भूख से आस्थाओं का स्वरूप मिट जाता है
निर्धन कन्याओं का रूप बिक जाता है।

भूख तो जनाब सारा नूर छीन लेती है
मजबूर की मांग का सिंदूर छीन लेती है
मैं निर्धन के रुदन की आँसूओ की आग हूँ
भूख के मजार पर जला हुआ चिराग हूँ।