घर घर ना रहा मकान हो गया माँ बाप जैसे पुराना सामान हो गया एक साथ बैठ कर खाना कैसे खाये टुकड़े टुकड़े खानदान हो गया।
बड़े शहर की ललक भूला दिये माँ बाप बेटी बेटा जैसे अब मेहमान हो गया नही लौट कर आये बच्चे जब उड़ जाये माँ बाप मुफ्त मे दरबान हो गया। अजब दुनिया अजब फसाना कहे ‘मोहन’ सुनो तुम मै तो बस टूटा अरमान हो गया।