मेरी कविता की सोच

भाव का उद्गम
शब्दों का जोड़ है
जब भी समेटता हूँ
कविता सी लगती है।

भाव का उद्गम
बहती जल की धारा सी है
जब भी डूबता हूँ
सविता सी लगती है।

भाव का उद्गम
रुहानी पवित्रता सी है
जब भी देखता हूँ
चाँदनी सी लगती है।

भाव का उद्गम
अद्भुत लता सी है
जब भी छुपा हूँ
दिल से लिपटी सी लगती है।

ऐ मेरे मोहन
जब भी मै आती हूँ
स्वतंत्र-स्वच्छंद सी लगती हूँ
फिर मै तेरे शब्दों से
अलंकृत होकर मंच पर
अवतरित सी होती हूँ
तेरी सृजन कला को
लोग विभिन्न संज्ञा देते हैं
प्रभावित सी होती हूँ
तालियो की गड़गड़ाहट से
वाह क्या लिखा है मोहन ने
अपना नाम कविता रख लेती हूँ॥