शाम सुरमई सी

एक शाम सुरमई सी
और हल्का सा अंधेरा
गोया कि बादलों ने
तान दी हो सूरज पर
सांवली सी चादर।

ये ऊँचे चिनार चिनाब का बहना
जमीं पर बिखरे पत्तों की खड़खड़ाहट
धीरे धीरे गुनगुनाती हवा
तिलिस्मी समां का अहसास
कराता ये नज़ारा।

महबूब की नजाकत नफासत
शरारत मिल करती है मदहोश
तो कभी तक़सीम हो कर
ले आती है मोहन वही
मखमली दुनिया से
संगदिली दुनिया में।