जल ही जीवन

बहता हुआ ये झरना,बहता हुआ यह पानी
कण-कण में है बसा तू, कण-कण की जिंदगानी।

वादी नदी पवन सब
तेरा ही गुण ये गाते
आया न होता जग तू
जीवन कहाँ से पाते।
पत्थर – पहाड़ वन में, छाई ! तेरी जवानी
कण-कण में है बसा तू, कण-कण की जिंदगानी।

पानी बिना परिंदे,
पानी बिना वो धंधे
तू साँस है सभी का,
यश गाते तेरे बन्दे।
महिमा अनंत तेरी, दुनिया तेरी दीवानी
कण-कण में है बसा तू, कण-कण की जिंदगानी।

तन-मन से खेलती हैं,
वो डैम की दीवारें
उगाते हैं खेत सोना,
तुझसे हैं ये बहारें।
गंगा में बह रहा है, सदियों से तेरा पानी
कण-कण में है बसा तू, कण-कण की जिंदगानी।

आती है बाढ़ जब भी,
सोता है तू शजर पे
क़ातिल तेरी अदाएँ,
दिखती हैं हर शहर पे।
तेरी रस भरी ये आँखें, करती हैं छेड़खानी
कण-कण में है बसा तू, कण-कण की जिंदगानी।

बहता हुआ ये झरना, बहता हुआ यह पानी
‘मोहन’ कण कण में बसा, कण कण की जिंदगानी ।।