नव वर्ष हमारा पर्व नही

मैं रोशन मुझे अपने पर गर्व नहीं,
मनाने का सब्र नहीं 
नव वर्ष पर मेरा कोई संदर्भ नहीं ,
क्योंकि ये अपना पर्व नहीं। 

चल रही है ठंडी-ठंडी
है गर्म हवा नहीं,
सूर्य बिना खिली हुई
सूर्यमुखी जवाँ नहीं 
मानव तो मानव
जीव-जंतु भी दबे हैं, ठंड से
बचने के लिए कोई दवा नहीं,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष,
नया साल मनाने के लिए
लगी हुई कहीं सभा नहीं । 

पुरानी पत्तियाँ,
अभी खिला सा वन नहीं ,
पौष माघ अभी बसंत और सावन नहीं !
आग नहीं तो बिस्तर,
उसके बाहर तन नहीं ,
क्यों मनाऊं,
मनाने पर गर्व नहीं ,
क्योंकि ये नव वर्ष अपना पर्व नहीं। 

घर से निकलने वाली शाम नहीं ,
घर के अंदर कोई काम नहीं !
पेट के लिए निकलना ही होगा,
ठंड से विश्राम नहीं ,
सच में नव वर्ष को मेरी ओर से प्रणाम नहीं। 

अभी जाने दो समय की गति ,
नव वर्ष मनाएंगे अभी नहीं,
खिलने दो नव पत्ती। 
आने दो बसंत,
लेकर आ रही है मां सरस्वती ,
तब मनाएंगे नव वर्ष जलाकर दिया और मोमबत्ती । 

नव वर्ष मनाएंगे पहले चली तो जाये ठंड
ठंड के पकवान चोखा लिट्टी
केक नहीं,
बनाएंगे जलेबी वह भी मीठी-मीठी,
है अपना ये हिन्दुस्तान,
विद्यापति, कबीर,दिनकर की मिट्टी,
उस पर नव वर्ष मनाएंगे,
अभी नहीं,
आने दो अपनी तिथि। 

अभी काफी ठंड है ,
ठंड की कोई दण्ड नहीं ,
पूजा पाठ करने के लिए कैसे नहाऊ ,
गर्म जल का प्रबंध नहीं 
बढ़ती ही जाती ठंड, ठंड की गति मंद नहीं ,
कैसे मनाऊं नव वर्ष,
नव वर्ष मनाने की कोई सुगंध नहीं। 

ठंड में यानि आज नहीं,
कोयल की मीठी आवाज नहीं 
शीत के कारण समय कैसे बीते अंदाज नहीं ,
तब कैसे मनाऊं नव वर्ष,
ये हमारा रीति रिवाज नहीं। 

कुहासा में नया साल मनाना,
अपना कर्तव्य नहीं,
वह भी अब नहीं 
नव वर्ष पर हमें गर्व नहीं ,
है अपना ये पर्व नहीं॥