गरीबों की याद

चल चल कर रात दिन
एड़ियाँ फट रही होंगी
फुटपाथ पर बैठकर सुस्ताने की
हिम्मत कहीं खो रही होगी।

रेल की पटरी पर लेटे लेटे
नींद मे ही मौत मिल रही होगी।
गोद मे लिपटे हुए बालक की
दूध की धारा सूख रही होगी।

रोटी की खातिर जो छोड़ा फूस का घर
आज फिर उसकी याद आ रही होगी।
महलों-नुमा घरों से गुजरते हुए
आशा की किरण जग रही होगी।

सियासत की इन बंद अंधेरी गलियों में
दीपक की लौ नजर आ रही होगी।
नए भारत के स्वप्नों के बुनकरों से
जवाब मांगने की हिम्मत आ रही होगी।

गरीबी मिटाने वाले इन लोकतन्त्र के चौकीदारों को
क्षणभर के लिए तो गरीबों की याद आ रही होगी।