तन्हाई देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' तन्हाई से अपने रिश्ते कोमै कैसे झूठा बोलूंलौट शाम जब घर आऊं तोमै खुद ही दरवाजा खोलूं।तेरे मेरे दिल तक जोएक पगडण्डी सी दिखती हैउस पर अपनी नजर टिकाएहर पल अपना हृदय टटोलूं।जज्बातों के कारीगर तुमकुछ पल रुक जाओ तो बेहतरअश्कों का दरिया भीतर हैथोड़ा तो मै खुलकर रो लूं।मेरा दामन थामे जोमयख़ाने तक ले आया हैक्यों ना उसकी खातिर मैग़म के प्याले भी पी लूं।