ख़त्म मेरा किरदार करो देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' अब दुनिया के रंगमंच सेख़त्म मेरा किरदार करोअपनी मर्जी से रो पाऊँइतना तो उपकार करो।हर टुकड़े को जोड़ रहा हूँपर खुद को ही छोड़ रहा हूँइस टुकड़े के जुड़ने का भीप्रबंध किसी प्रकार करो।सपनों नें नींदे छीनीऔर अपनों ने सपने छीनेबरसों की जागी आँखों अबचिर निद्रा स्वीकार करो।