मन क्यों तेरे पीछे भागे देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' मन क्यों तेरे पीछे भागेतू जीवन मे प्रीत सी लागेतुझको देखूं या न देखूंतू दिल की चौखट से झांके।जुड़े हुए हम किन धागों मेंसुर अलबेले हैं रागों में।लाख हृदय हो दुख से द्वेलिततुम संग सुख है अनुरागों में।तुम पर दुख की काली छायाहृदय विखंडित घायल कायागले लगाकर तुझे छिपा लूँपर इतना अधिकार न पाया।तुमको दुख में जलते देखाखुद को घुट घुट मरते देखातुम प्रेम कहो या पागलपनपागलपन में तड़पते देखा।दया करो है मेरे ईश्वरकृपा सिंधु हे प्रेम सरोवरमेरे मन का त्रास मिटाओप्रेम पथिक बन राह दिखाओमैं प्रेम का मर्म न जानूबाह्य जगत को ही पहचानूंमुझको ज्योतिर्मय कर दो प्रभुसत्य प्रेम करुणा भर दो प्रभु।