कितना मधुर लगता था चिड़ियों का चहचहाना अब वो कलरव नहीं कहीं गायब हो गया जैसे मधुरिम वो आलाप वो सुबह की शुरुआत चिड़ियों का संगीत अब खो गया कहीं दूषित हो गया है सब कुछ यहाँ खाली पन ही है यहाँ प्रकृति का अवसाद वो रिक्तिता, वो गुनगुनाहट कहीं नहीं अब यहाँ नहीं दिखता झुरमुट में चिडा और चिड़िया का संगीत यहाँ कितना मधुरिम वसंत आया करता था पत्ता पत्ता मुस्काता था अब वो सब मिले कहां कोई नहीं है हल यहाँ हां.. कोई नहीं है हल यहाँ।