पहचान मेरी

अधूरा सा इश्क,
बेजुबान ये दुनिया
कौन हूँ मैं,
ये दुनिया पूछे
पहचान मेरी
अधूरी सी ये जिंदगी,
पूछे पहचान मेरी
ये खुला आसमान,
जैसे दूर कहीं से बादल
आ रहे हों,
जैसे मुझे पुकार रहे हों
मै उनमें कहीं खो रही हूँ,
डूब रही हूँ
जैसे वो मुझमें समा रहे हों
बारिश की एक बूंद
जैसे मेरे चेहरे पर पड़ी
जैसे मै खुद में पूरी हो रही,
वो मिला तो जैसे
सारा जहां मिला,
नज़र कहीं हटी तो
बादलों के बीच
जैसे वो फरिश्ता दिखा,
उसने पूछा मुझसे,
क्यों है तू परेशान,
जरा सबको बता
अपनी पहचान
क्यों है तू खुद से डरती,
उठ जरा छू जरा,
अपनी पहचान
इस दुनिया को बता जरा
जो बोले तुझसे
क्या है तेरी पहचान
उनको तू बता जरा,
नदियों ने न पूछा किसी से,
बादलों ने न पूछा किसी से,
लहराती हुई नदियों ने
समंदर से न पूछा
ऐसी है तेरी पहचान,
अब अपने पंख तू खोल जरा
सपनों को अपने सजा जरा
चुन चुन कर जो सपने तूने तोड़े
उन सपनों को सच कर के दिखा
जिस राह की न है कोई मंजिल
उस मंजिल की तू राही
बन कर तो दिखा जरा
रास्ते में अगर आए
कोई परेशानी
उन परेशानियों से
लड़कर तो दिखा जरा
आइने के सामने खड़ी होकर
खुद से बात तो कर जरा
क्यों घबराती है तू,
देख जरा खुद में
हर एक सवालों के
हल हैं तुझमें
कोशिश तो कर,
न तू कभी डर
कौन है तू,
क्या करती है तू,
कहां से आई है
इन सवालों के जवाब
इस दुनिया को बता
अधूरा सा इश्क,
बेजुबान ये दुनिया
कौन हूँ मैं,
ये दुनिया पूछे
पहचान मेरी
अधूरी सी ये जिंदगी
पूछे पहचान मेरी।