माँ

मेरी आँखो में माँ की धुंधली तस्वीर है
शायद वो बिस्तर पर कराहती हुई माँ थी
मैने माँ को देखा था, माँ का प्यार नहीं देखा था
जब भी उदास होती हूँ
सोचती हूँ काश मेरी भी माँ होती
निरख परख कर के वो मुझे
किसी अजनबी हाथों में सौंपती !!
मुझे ममता में बांध कर शायद
कभी मुझे वो तकलीफ़ नही होने देती
शायद वो माँ होती है जो
अपनी बेटी के लिए सब करती है
मेरी तो थी ही नही कहीं
आह! बाल्यावस्था में तुम
क्यों छोड़ गई मुझे, और क्यो??
क्यों न मुझे भी तुम साथ लेती गई
कठिन था वो बचपन वो सूना बाल पन
आगे बढ़ने की मुझमे नही थी हिम्मत
पर तुमने मुझमें आत्मबल दिया
ऊपर से ही मुझे आशीर्वाद दिया
शायद वो माँ तुम थी जो मुझे साहस प्रदान करती थी !!
अकेले दम पर मंज़िल को पार करना
इतना आसान कहाँ था !
हर कदम पर साथ चलने वाला भी तो कोई नही था !!
शायद, तुम थी मेरे अन्दर,
मै स्त्री बनी थी पर टूटती बिखरती रही थी
कितने ही तूफान आए,
पर एक अदृश्य शक्ति तू मुझे
प्रदान करती थी
जीवन के झंझावात से लड़ती रही थी
धुंधली सी तेरी याद मेरे स्वरूप में
तू आज भी मुझमे है कही
शायद इसलिए मैं भी आज एक माँ हूँ
हर रूप में, हर ज़र्रे में माँ का अस्तित्व होता है,
तभी तो एक पुरूष उससे जन्म लेता है,
बिन माँ के कोई बचपन न हो किसी का
माँ ही हो तो बचपन बीते सभी का!!
दर्द भरी अनुभूति से न बीते किसी का बचपन
माँ ही मिले सभी को खुशहाल बीते बचपन।