आईना

आईना जब भी मैं देखती हूँ
वो मुस्कुरा देता है मुझे देख कर
वो पहचान लेता है
मेरे अंदर की बेचैनी और तड़प
मेरे चेहरे को बखूबी पढ़ लेता है
वो भी अकेला है
मैं भी अकेली हूँ
ये आइना जान लेता है
वो भी मुझे देखकर खुश है
मैं भी उसमें झाँक कर खुश हूँ
मैं उसे जानती हूँ
वो भी मुझे पहचानता है
फर्क़ बस इतना है हम दोनों में
मैं हालात के साथ ख़ुद को बदलती हूँ
वो जैसा है वैसा ही रहता है
बिना बदले
ये मेरी मज़बूरी है
जीवन जीने की
ये उसकी खूबी है
एक जैसा रहने की

आईना…आईना है
मैं…मैं ही हूँ
सूरत देख कर पहचान
लेती हूँ
आइना मुझसे धोखा नही करता
मुझे जोड़े रखता
आइना…आइना है
मैं …मैं ही हूँ
हां… मैं ही हूँ।