दर्द-ए-मोहब्बत

मुहब्बत में पड़ा था हमको यहाँ जलना,
मगर अब सीख लिया है हमने अकेले ही चलना।
बनाती रही ख़्वाब का मैं जो कभी महल,
हकीकत में सीख लिया अब अकेले ही रहना।

हाथ में थी ही नहीं रेखा प्रेम की
सीख लिया बिना प्रेम के ही रहना।
हमारे पास जो कुछ था, लुटा दिया था उसको
मिला नहीं बदले में प्रेम से उसके साथ जीना।

झूठी दिलासा में फँसाना मत अब कोई मुझे
दिखावे के प्यार में किसी के अब
नहीं है अब हमको रहना।
शराफ़त में करती रही थी अब तक यकीं मैं,
जिंदा हूँ कैसे नहीं है मुझको कहना।

हमारी अनकही दास्तां सुनकर करोगे क्या तुम सब
कशिश में बह गए बहुत से तो
झूठे प्रेम के साए में अब नहीं है रहना।
अरे छोड़ो दिखावा प्यार का करना,
बहुत पहले से छोड़ दिया हमनें अब इश्क करना।

कहा हमने वही जो सच है मगर,
नहीं संवेदना ज़ाहिर तुम दुख की करना।
जहर पीती रही ले नाम उसका पल पल,
उधर छोड़ दिया साथ तुमने हमारे रहना।

सजा हमने भी ली दुनिया नयी अपनी,
मिला तुमको भी नहीं ‘कशिश’ के साथ रहना।