गाँव

कभी सोचती हूँ
अपना भी एक गाँव होता
दूर कोई पर अपना होता।
जाते हम भी सह परिवार
गाँव की सुखद हरियाली में
हम भी सुकून लेते अपार
पीपल की छांव होती,
ठंडी ठंडी बयार होती
असली दूध गाय का पीते
छाछ और मट्ठा भी पीते
खेतों की पगडंडियों पर
अल्हड़ से भाग रहे होते
वो चूल्हे की रोटी आह !
हमने भी खाई होती
ममता का वो सुखद अहसास
कोई गाँव का होता !
आह !
अपना भी इक गाँव होता।

स्वच्छ हवा होती,
भरपूर ऑक्सीजन होती
चिड़ियों का कलरव होता
पेड़ों का खूब झुरमुट होता
दिल्ली की आबो- हवा से हटकर
अपना भी इक गाँव होता।
सुंदर से अपने वो रिश्ते होते
प्यार का असली दामन होता
छल फरेब से दूर ‘कंचन’
सुखद कोई अहसास होता।
अपना भी इक गाँव होता।