कविता में चुभन महसूस ज़िगर, वेदना में संवेदना का हक । ऐ हवा ! नियति है प्रखर , शब्दों का संसार से चमक । तांडव करते हुए कहा सागर, चल पड़े थे हौले-हौले सबक । मीन के निकेतन में लहर, मौत से लड़ना नहीं नाहक । तन्हाई भी तो पल-पल ठहर, नमक का हाल बताया महक । प्रेम का भी है असर, अश्क का आंखों में धमक । पृच्छा कर आगे अग्रसर हमसफ़र, पूरी कहानी की है झलक । उलझे हुए रंग के मंजर, परछाई नहीं जाता है बहक ।