मन है हीन खिन्न, इश्क है लेकिन, गुम हुए दीन, शेष क्या रंगीन , कौन हुआ ऊऋण ? लगा मंजर कमसिन, तस्वीर क्यों भिन्न, खंडहर है प्राचीन, धागे अति महीन , कुछ नहीं नवीन । छतरी भी छिन्न-भिन्न, बरसात है प्रवीण , डूबता गया जमीन, मिट्टी जैसे पराधीन, मंजिल भी संकीर्ण । बूंदें अलबेली समीचीन, सपेरा ,सर्प,बीन – कौन हुआ उत्तीर्ण, तिमिर, परिंदे, यकीन, अंतिम कौन कुलीन ?? वज़ह और अनगिन, संघर्ष के दिन, महफ़िल भी रंगहीन, वो, मैं, दुर्दिन- जीवित ये तीन ! रही ख्वाहिश अनुत्तीर्ण, तूफान के अधीन, नदी-सागर में मीन, चांदनी कुछ गमगीन, तलाशने है बेहतरीन।