इश्क़

मन है हीन खिन्न,
इश्क है लेकिन,
गुम हुए दीन,
शेष क्या रंगीन ,
कौन हुआ ऊऋण ?
लगा मंजर कमसिन,
तस्वीर क्यों भिन्न,
खंडहर है प्राचीन,
धागे अति महीन ,
कुछ नहीं नवीन ।
छतरी भी छिन्न-भिन्न,
बरसात है प्रवीण ,
डूबता गया जमीन,
मिट्टी जैसे पराधीन,
मंजिल भी संकीर्ण ।
बूंदें अलबेली समीचीन,
सपेरा ,सर्प,बीन –
कौन हुआ उत्तीर्ण,
तिमिर, परिंदे, यकीन,
अंतिम कौन कुलीन ??
वज़ह और अनगिन,
संघर्ष के दिन,
महफ़िल भी रंगहीन,
वो, मैं, दुर्दिन-
जीवित ये तीन !
रही ख्वाहिश अनुत्तीर्ण,
तूफान के अधीन,
नदी-सागर में मीन,
चांदनी कुछ गमगीन,
तलाशने है बेहतरीन।