दर्शन

हर शब्द में आधार मन,
तू चमन कि है गगन ।
सुमन की हसरतें भी स्वप्न,
फिर उठा कई ज्वलंत प्रश्न ।
मौसम का मिजाज हुआ नग्न,
आभार परोसता है कहां चमन?
अश्क आंखों से निकला दर्पण,
हवा में गिरकर लहूलुहान तन।
अब मकान में नहीं आंगन,
प्रीत की रीत यादगार क्षण।
तुलसी का पौधा और दामन,
पगडंडी पर थका-हारा लगा यत्न।
जंगल में आग जैसा दमन,
कोलाहल में है फिक्रमंद बंधन।
जीवन और मौत युद्ध प्रण,
माना नहीं कभी महफ़िल समर्पण।
महंगाई की मार के दर्शन,
तिमिर भी तो है सघन ।
देव की पूजा में कई मग्न,
देवियां भी करती रही चिंतन।
किसका इंतज़ार अब है जन,
मुसाफिर जुगनू तलाश रहा मिलन!
निशा, चांद, तारों के धन,
लूट लिया अचानक ही घन !!