खता होती है जिंदगी, मौत भी शायराना रंग। हवा होती है जगी, हम जिस्म रूह संग। अकेले नहीं तो बंदगी, प्रीत धरा-फलक तक जंग। दर्पण में कुछ सगी, नग्नता पर्दा में भंग। तिमिर की भी बानगी, मन हाशिए पर बदरंग । सियासत से छलका सादगी, अश्रुपूर्ण विदाई भी पतंग। डोर कहीं और बागी, मत होना प्रियतमा बेढंग। महफ़िल महफूज़ नहीं दौड़ी-भागी, घड़ी की सूई बिजली उमंग। नदी भी है नंगी, जल मछलियों के सुरंग। जाल में है मातंगी, हर आलम में तंग।