जिंदगियां

बरसात की रात में,
कड़कती रही थी बिजलियां।
फलक पर अज्ञात में,
फिर पनपी थी खामोशियां।
रिश्ते की सियासत में,
धरा पर भीगी जिंदगियां।
चांद-तारों की चाहत में,
राहत की मौजूदगी दूरियां।
पता नहीं जन्नत में,
अतीत में आहत परछाइयां।
जुगनू के ख़िलाफत में,
कल तक बजेगी शहनाइयां।
नदी-सागर जगत में,
उछलती-तैरती पाई गई मछलियां। ‌
खबर छाई प्रकट में,
पर्दा में नहीं कश्तियां।
प्रात तक संकट में,
शून्य क्यों प्रियतमा तिजोरियां?
आजकल की बात में,
किसकी थी उड़ी हवाइयां??
बेवक़्त की नौबत में,
नफ़रत की है कहानियां।
जाल की शर्त में,
नियति हवा नाप लिया।
रेत पर लिखावट में,
गुम हो गई जवानियां।
अश्क भी विरासत में,
फैला गई नव लहरियां।
ग़म भी हकीकत में,
दिल से जलाया दीया।
कतिपय घड़ियाली ठाट-बाट में,
जमा भी की मक्कारिया।
अब परिंदा शरारत में,
साहिल पे हसीन बर्बादियां!
कुछ यादें शहादत में,
कभी इश्क भी पहेलियां।