मील का पत्थर

अब प्रतीक्षा और बिछावन,
अकेले नहीं थे मन।
निद्रा का तलाशते आवागमन,
भूख-प्यास से युक्त सिंहासन।
भंवर में कुछ दर्शन,
नदी में मीन आकर्षण।
चुम्बकीय पहचान है विकर्षण,
चाहत में धुआं प्रलोभन।
पुस्तक पर पड़े धूल-कण,
संकेत में माना परिवर्तन।
पन्नों में दर्ज अनबन,
अर्ज किया बेवफ़ाई दनादन।
कुछ यत्न में सहन,
कुछ था प्रेरित मजबूरन।
न यह विष का वमन,
न यह अमृत का मीठापन।
बस रंग यूं जन-जन,
श्रृंगारित मंजर हर चरण।
यादों के साथ नयन,
महसूस हुआ है धड़कन।
अदृश्य है हमदर्द स्वप्न,
जो जन्म देगा कथन।
अर्थ जगत में सुमन,
रचा मिलन या बिछुड़न।
दरअसल वह निकला चुभन,
आग का था चमन।
वहीं दूसरी ओर पवन,
बर्बादी का था घन।
बाढ़ का भाव चित्रण,
उथल-पुथल में शामिल मंथन।
फिर गर्मी से उत्पीड़न,
वाह ये तलब जीवन।
रात में तिमिर व्यसन,
दिन में शरारती गायन।
मिला था मिथ्या सम्मोहन
टूटा-फूटा है मेरा-तेरा दर्पण।
अश्क के अपने कथन,
मील का पत्थर क्षण-क्षण।
चांद-सूरज में कुछ उलझन,
फिर भी अटूट बंधन।
अंतिम सच नहीं मरण,
यह है सुखद आश्वासन।
मेला में किरदार आगमन,
यहां था तभी किरण।
जुगनू में था सिहरन,
अधिकारिक सुधि नहीं यौवन।
अंतरंग ठोकर से बचपन,
गिरकर चला था यकीनन।
वृद्ध बरगद का बदन,
सेहत को दिया संरक्षण।
संवाद का झोंका चयन,
यह भी संविधान,अमन!
कितना विस्तारित ये पावन,
कितना किसका दागदार दामन?
प्रकृति,नियति, धरा,गगन,
कौन क्षमाप्रार्थी,मुसाफिर मग्न??
पानी नहीं देता जलन,
शीतलता का करें पोषण।
प्रीत का डवाडोल परीक्षण,
शतरंज की चाल दमन।
मसीहा अंग-अंग बसा समर्पण,
देवी शेष नहीं आलिंगन।
अंत इंकलाब से मापन,
तब कहानी का समापन।