मां

दिन-रात चलते बैठक,
कुछ हैं चिंतक,
किंतु है झिझक,
चाहिए कुशल शासक।
दर्द की सबक,
रोकती अन्यायी महक,
वह दिन-रात निर्णायक,
मां शारदे तू निर्वाहक।
रावण रहा खटक,
कहां है आलोचक-समालोचक,
कौन है नायक,
क्या सब खलनायक ?
कतिपय हैं हिंसक,
बताया ऐतिहासिक पुस्तक,
कुछ हैं गायक,
मंजर कुछ विदूषक।
मुस्कराहट तलें आक्रमक ,
आजादी और नमक,
अहिंसा था आकर्षक,
है देवी प्रेरक।
अभावुक पत्थर सड़क,
मौलिक नेकी पथप्रदर्शक,
पाप के घटक,
गरल-सुधा के नाटक
समझा कौन स्वर्ग- नरक ,
कौन इसका उद्भेदक ,
सृष्टि के सृजक,
त्रिलोक के पालक। 
हम गए भटक,
तम की भनक,
मृगतृष्णा में सनक,
सच में बकबक।
क्यों होता नाहक ,
ये कैसी झलक,
मिथ्या है रौनक,
बस तू उद्धारक। 
हम ठहरे सेवक,
कुमति तू निवारक,
ऊपर है फलक,
सूरज में चमक-दमक।
चंदा भी व्यापक,
हम भोले बालक,
पहल चाहिए सार्थक,
शांति है आवश्यक।
नहीं जानता मानक,
गया हूं थक,
प्रकृति कौन श्रोता–दर्शक,
तेरी शरण ललक ।